इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि इस्लामिक कानून एक पत्नी के रहते मुस्लिम व्यक्ति को दूसरी शादी करने का अधिकार देता है, लेकिन उसे पहली पत्नी की मर्जी के खिलाफ कोर्ट से साथ रहने के लिए बाध्य करने का आदेश पाने का अधिकार नहीं है. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा पत्नी की सहमति के बगैर दूसरी शादी करना पहली पत्नी के साथ क्रूरता है.
मामले में फ़ैसला सुनाते हुए कहा है कि कोई मुस्लिम व्यक्ति अगर अपनी पहली पत्नी और बच्चों का ठीक से खयाल नहीं रख पाता है तो वह दूसरी शादी नहीं कर सकता.
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मुस्लिम शख्स पहली पत्नी और बच्चों का ठीक से खयाल नहीं रख सकता तो दूसरी शादी नहीं कर सकता- इलाहबाद हाई कोर्ट। pic.twitter.com/tZiG25Qzm3— 𝐒𝐮𝐧𝐢𝐭𝐚 𝐊𝐮𝐦𝐚𝐫𝐢 (@ISunitaKumari) October 12, 2022
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस राजेंद्र कुमार की बेंच ने परिवार न्यायालय अधिनियम के तहत दायर एक अपील पर आदेश देते हुए ये बात कही.
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हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई मुसलमान अपनी पत्नी और बच्चों की ठीक से परवरिश करने में सक्षम नहीं है तो क़ुरान के अनुसार वह दूसरी महिला से शादी नहीं कर सकता.
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में ये भी कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति जिसने अपनी पहली पत्नी की इच्छा के विरुद्ध दूसरी बार शादी की है, वह पहली पत्नी को उसके साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है और इसके लिए सिविल कोर्ट से राहत की मांग नहीं कर सकता.
बेंच ने कहा कि कुरान की सूरा 4 आयत 3 का धार्मिक आदेश मुस्लिम पुरुषों पर लागू होता है. ये कहता है कि एक मुस्लिम पुरुष अपनी पसंद की चार महिलाओं से शादी कर सकता है, लेकिन अगर उसे डर है कि वह उनके साथ न्याय नहीं कर पाएगा, तो वह केवल एक से ही शादी कर सकता है.
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